Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर 


नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

 साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।
 हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं ।
 अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।
 जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥
 गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

 मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ।
 तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार ।
 अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ ।
 जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥
 गुरु बिन कैसे लागे पार ॥

   0
0 Comments